जेसीडी विद्यापीठ में मुंशी प्रेमचंद की 139वीं जयंति तथा शहीद ऊधम सिंह के शहीदी दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की जयंति पर उनको नमन किया गया वहीं शहीद-ए-आजम ऊधम सिंह को भी उनकी शहादत के लिए किया गया याद
जेसीडी विद्यापीठ में स्थापित शिक्षण महाविद्यालय के सभागार कक्ष में हिंदी साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की 139 वीं जयंती तथा शहीद-ए-आजम ऊधम सिंह के शहीदी दिवस पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें चौ.देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा के अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. पंकज शर्मा ने बतौर मुख्य वक्ता एवं अतिथि शिरकत किया वहीं इस कार्यक्रम की अध्यक्षता जेसीडी विद्यापीठ की प्रबंध निदेशक डॉ.शमीम शर्मा ने की। इस मौके पर जेसीडी विद्यापीठ के विभिन्न कॉलेजों के प्राचार्यगण डॉ.जयप्रकाश, डॉ.अरिन्दम सरकार, डॉ.दिनेश गुप्ता, डॉ.राजेन्द्र कुमार, डॉ.अनुपमा सेतिया सहित अन्य अधिकारीगण एवं विद्यार्थीगण भी मौजूद रहे।
डॉ.जयप्रकाश ने सर्वप्रथम अतिथियों का स्वागत करते हुए मुख्यातिथि महोदय का संक्षिप्त परिचय दिया। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद एक अकेले ऐसे हिंदी साहित्यकार है जिनकी उस समय देखी-सुनी समस्याएं जिन्हें उन्होंने अपनी रचनाओं में उतारा। वहीं उन्होंने इस मौके पर अपने संबोधन में शहीदे-ए-आजम ऊधम सिंह के बलिदान के बारे में भी विद्यार्थियों एवं अन्य को अवगत करवाया।
इस मौके पर मुख्यातिथि का अभिवादन एवं स्वागत करते हुए डॉ.शमीम शर्मा ने कहा कि साहित्य समाज का आइना है तथा साहित्यकार उसे दिखाने वाला होता है। समय, काल, देश परिस्थिति चाहे जो भी हो साहित्य इस भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है। कलम के सिपाही उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद इस शृंखला के वे चमकते सितारे हैं, जिनका प्रकाश कभी धूमिल नहीं हो सकता। डॉ.शर्मा ने कहा कि वे जन्में तो परतंत्र भारत में थे लेकिन अपनी लेखनी से भारत मां को हमेशा आजाद कराने की कोशिश करते रहे। उनकी लेखनी हमेशा भारत की आजादी की मांग करती रही। उन्होंने कहा कि आज दो महान शख्सियतों का दिवस है, जिनमें एक का जन्म हुआ तथा दूसरे शहीद-ए-आजम देशहित के लिए अपने प्राणों की आहुति दे गए तथा युवाओं को प्रेरणा देकर गए कि देशहित में अगर प्राण भी न्यौछावर करने पड़े तो हंसकर करना चाहिए। इस मौके पर दोनों ही महान हस्तियों को स्मरण किया गया।
बतौर मुख्यातिथि एवं मुख्य वक्ता अपने संबोधन में डॉ.पंकज शर्मा ने सर्वप्रथम इस अवसर पर आमंत्रित करने के लिए डॉ.शमीम शर्मा एवं आयोजकों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि मुंशी प्रेमचंद के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब उनके द्वारा दिखाए गए रास्तों का आज हम अनुसरण करें और हिंदी के प्रति मान-सम्मान रखते हुए इसे अपनाएं। उन्होंने कहा कि मुंशी प्रेमचंद का व्यक्तित्व बड़ा ही साधारण था। उनके निधन के 83 वर्ष बाद भी उनकी कालजयी रचना कफन, गबन, गोदान, ईदगाह और नमक का दरोगा हर किसी को बचपन की याद दिलाती है। उन्होंने समस्त छात्र-छात्राओं से उनसे प्रेरणा लेने को कहा। प्रेमचंद ने हिंदी उपन्यास को लेखन की उस ऊंचाई तक पहुंचाया जहां से वो अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं। डॉ. शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद्र जब आठ वर्ष के थे तब उन्होंने हिंदी के शीर्ष रचनाकारों को पढ़ लिया था। छोटी सी उम्र में ही रचना शुरू कर दी थी तथा प्रेमचंद की रचनाओं में आम आदमी की पीड़ा झलकती है।
वहीं इस कार्यक्रम में डॉ.राजेंद्र कुमार ने इस कार्यक्रम में पधारे हुए अतिथियों एवं अन्य का धन्यवाद करते हुए कहा कि साहित्य हमें ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ अनेक सामाजिक बुराईयों से अवगत करवाने के साथ-साथ इनसे निपटने का भी रास्ता दिखाते हैं। उन्होंने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को साहित्य को पढऩा चाहिए तथा उससे ज्ञान अर्जित करना चाहिए।
इस अवसर पर जेसीडी विद्यापीठ के विभिन्न कॉलेजों के प्राचार्यगण, स्टाफ सदस्यों के अलावा अन्य अनेक गणमान्य लोग एवं समस्त विद्यार्थीगण उपस्थित रहे तथा महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद एवं शहीद-ए-आजम ऊधम सिंह को नमन किया।